रविवार, जून 27, 2010

ज़ब्त की दौलत

अपनी एक पुरानी रचना पेश कर रहा हूँ, कृपया गौर करें
धन्यवाद
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आंख का आंसू और न छालों का पानी निकले
येह ज़ब्त की दौलत सफ़र में काम आएगी

बहुत किया इंतज़ार किसी खास के आ जाने का
अब तो इस मंडप में गम की बारात आएगी

मालूम है कि मैं नहीं हूँ गुनाहगार, लेकिन
हरेक उंगली मेरी ही ऑर मुड़ जाएगी

जिस रोज़ किया था तूने मिलने का वादा
न पता था, उसी रोज़ रुत बदल जाएगी

जिस वक़्त उड़े फिरे थे आसमान में हम
क्या पता था कि वो डोर ही कट जाएगी

तुझसे कुछ कहने की तो थी सारी तैयारी
सोचा भी न था, ज़ुबान ही कट जाएगी

येह जान कर ही किया दिल का सौदा मैंने
एक रोज़ तू किसी और की हो जाएगी

मत बोलो, दीवानों से कि न जागो हर शब्
जवानी की है आदत, जाते-जाते जाएगी

2 टिप्‍पणियां:

  1. :) कोरे कागज पर जज्‍बात की ऐसी स्‍याही कभी कभी खुद को ही परेशान करने लगती है। रचना अच्‍छी है।

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  2. आंख का आंसू और न छालों का पानी निकले
    येह ज़ब्त की दौलत सफ़र में काम आएगी

    bahut hee umda sheraat hain sir... wah!....


    meri post par post se bhi achchhe comnts karne ka shukriya...aur haan aap mujhe anshuja ji na bola karen... anshuja hi kaafi hai


    saadar
    anshuja

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