गुरुवार, फ़रवरी 04, 2010

एक था सुभाष घई

दोस्तों, सुभाष घई तो आपको याद होंगे। ठीक, वोह ही जिन्होंने एक दौर में "हीरो" और "कर्मा" जैसी फिल्म बना कर खासी वाहवाही बटोरी थी। उनकी "रामलखन" ने भी सफलता के झंडे गाड़े थे। यह बात और है कि इनमे से एक भी फिल्म में कुछ खास नहीं था, वस्तुतः सभी फिल्म्स घिसी पिटी कहानी पर बनी थीं, लेकिन भाटों का क्या करें? भाई लोग सक्रिय हुए और अचानक घई को शोमैन का खिताब दे दिया गया, वोह खिताब जो इससे पहले राज कपूर को मिला था। कमाल है की किसी ने भी इन भाटों से नहीं पूछा कि भाई कहाँ राज कपूर और कहाँ सुभाष घई? उस शोमैन ने "आवारा" जैसा उस वक़्त का अनछुआ कांसेप्ट दिया, बहुत कम उम्र में "आग" जैसी कृति रची। मैं आह, बरसात, संगम, बोबी, बीवी ओ बीवी, कल आज और कल जैसी फिल्मों को अलग कर दूं तब भी, मेरा नाम जोकर, जागते रहो, बूट पॉलिश, सत्यम-शिवम्-सुन्दरम, राम तेरी गंगा मैली, राजकपूर को वाकई शोमैन के लायक बनाती हैं। क्या श्री घई या उनके फैन्स उनकी एक भी फिल्म को राजकपूर के पासंग बता सकते हैं? हाँ, धुन या यादें ज़रूर ऐसी फिल्म्स थीं जो घई को अलग पहचान देती हैं, लेकिन घई उनकी दिशा में जा तक मुड़े, शायद देर हो चुकी थी। अब शोमैन का खिताब बरकरार रखने के लिए घई को वोही राजकपूर बनाना होगा, जिसने जोकर की असफलता के बाद बोबी पर दाँव लगाया और कामयाब रहे........................... सुन रहे हैं, श्री घई???????????

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