मंगलवार, फ़रवरी 02, 2010

पापाजी के लिए

पापाजी, लोगों ने मुझे कहा पागल
और कहा दीवाना
उस ठंडक की रात, जब उन्होंने देखा कि
ठंडक से सिहरते, बगैर गरम कपड़ों के
एक आदमी को, मैंने पहना दिए अपने गरम लिबास
और खुद, उस दो पहियों वाली गाडी पे चल पडा, घर की तरफ,
ठिठुरता हुआ। सब हँसे, पापाजी !
मगर, मैं तो वोह ही याद कर रहा था,
जो आप बचपन से मुझे याद करवाते थे,
"हे भगवान् दया करो, सब जीवों का भला करो,
सबको खाना पानी दो, सब को पूरे कपड़ो दो "
पापाजी, मुझे लगा कि भगवान् जी की बात आपकी ही मुझ से
कह रहे थे, इसलिए मैंने वोह किया...........
अब लोग पागल कहते हैं
तब, उनके स्वरों से बचने के लिए मैं कहता
हूँ ."हे भगवान् दया करो, सब जीवों का भला करो,
सबको खाना पानी दो, सब को पूरे कपड़ो दो "
तब भी पापाजी लोगों का शोर बंद नहीं होता है,
तो मैं अपने कान ही कान में कहता हूँ, पापाजी! पापाजी! पापाजी!
क्योंके मैं जानता हूँ, पापाजी और कोई नहीं हो सकता। सिवाय आप के

आपका बेटा पागल हो सकता है, लेकिन आप हमेशा पापाजी ही रहेंगे
हमेशा की तरह मेरा पूज्यनीय, पापाजी!

आप की बहुत याद आती है।


रत्नाकर

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