बीती देर रात ऑफिस से आने के बाद न जाने मन कैसा हो रहा था, जब अति हो गयी तो कुछ लिख डाला, कृपया देखिए
नूरे-माजी में छिना
वो तीरगी का लुत्फ़
अगरचे मुकामे सुकूं
तलाशा किये थे हम
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मारा तुझसे अहद ने
पसे-नज्द ला के हमको
वरना मंजिले-ज़िन्द
आ ही चुके थे हम
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सदके मैं कुफ्रे-ज़िन्द
एक आह ही बची है
यूं तो शबाबे-महशर
पा ही चुके थे हम
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अल्लाह क्या है दोजख
ओ क्या जन्नत का ख्वाब?
कुरबां दिले-साहिर
सब भूल गए थे हम
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रहे सलामती उनकी
रस्मे-ज़फ़ा के संग
अशआर जिनकी खातिर
अब बन गए हैं हम
बहुत ही अच्छी रचना....मेरी आत्मीय शुभकामनाएं .....अखिलेश सोनी
जवाब देंहटाएंlajawab ye rachana likhi nahi rachi gaee hai. sadhubaad
जवाब देंहटाएंshahidsamar