रविवार, फ़रवरी 07, 2010

दूसरों की कलम से जो लगा बहुत ही अच्छा

नाम याद नहीं आ रहा, लेकिन उनका सरनेम त्रिपाठी है, सागर के हैं, उनकी एक कहानी "सिगरेट " उनके किसी कहानी संग्रह में पढी थी। आज तक उसे नहीं भूल सका हूँ। युवा मानसिकता को समझाने वाली ऐसी कहानी मन को छू जाती है। इसी संग्रह में शामिल "हार जीत " भी बेहद अच्छी थी। एक और कहानी का नाम भूल गया हूँ, वोह भी मर्मस्पर्शी थी, जिसमें एक युवक सफ़ेद दाग से पीड़ित अपनी माँ का जीवित अवस्था में पिंडदान कर देता है। कभी किसी का त्रिपाठी जी से संपर्क हो तो कृपया उन्हें मेरा अभिवादन ज़रूर कह दें।
सारिका के काफी पुराने एक अंक में कृष्ण कालिया की स्टोरी "पीले फूलों वाली फ्रोक " पढी थी। आज भी जब उसे पढ़ता हूँ तो हमेशा लगता है की कुछ और बेहतर कुछ और नया पढ़ा है। उस कहानी में बचपन की भावनाओं की अधेड़ अवस्था में जो अभिव्यक्ति बताई गयी, उसका कोई जवाब नहीं है।
इलाचंद्र जोशी का उपन्यास "संन्यासी " कॉलेज के समय में काफी बार पढ़ा था, लेकिन अब वोह देखने ही नहीं मिलता है। कई पुस्तकालय भी देख चुका हूँ, किसी को इसके बारे में पता चले तो कृपया बताएं , नहीं तो उसे पढ़िए ज़रूर

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