साथियों, प्रूफ की गलती के चलते पहले वाली पोस्ट में कुछ महाभूल हो गयी थीं, माफी के साथ संशोधित कविता पेश है
होली पर हंसी की बात न हो तो मज़ा क्या है, तो लीजिए पेश है वोह कविता जो हमने कॉलेज के दौर में मस्ती के मूड में लिखी थी
साल भर देखे ख्वाब जिसके संग खेलने को होली
होली के दिन वोह किसी और की हो ली
और हमारी खाली रह गयी झोली
साल भर डालते रहे जिस पर हम डोरे
एक दिन उसीने हमें पहना दी डोरे
और लाड से बोली राखी का बंधन निभाना भैया मोरे
दीवाली पर हमने नया तरीका आजमाया
उनके पास जाकर श्रद्धा से सर झुकाया
और कहा, हम तो बस इतना जानते हैं
की आपको ही लक्ष्मी मानते हैं
अब तो दीवाली तब ही मनाएंगे
जब आपको बना के लक्ष्मी घर पर लायेंगे
वोह बोली, आपकी भावना मैं जानती हूँ
आप मुझे लक्ष्मी, मैं आपको लक्ष्मी का वाहन मानती हूँ
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सभी को होली की शुभकामनाएँ
आपका
देव.डी
ha ha ha... sundar vyangya...
जवाब देंहटाएंbahut khoob
too gud :)
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