सोमवार, फ़रवरी 08, 2010

रत्नाकर की कलम से... ख्वाब और हकीकत

कुछ अजीब मूड में लिखी थी यह पंक्तियाँ, दास्तान किसी और की थी और तसव्वुर मेरा, गौर फरमाइए

तसव्वुर तेरा , उसे भी रहा मुझे भी

दीदार तेरा, उसे भी हुआ, मुझे भी

मोहोब्बत तेरी, उसे भी मिली मुझे भी।

फरक तो था, फ़क़त इतना...

हकीकत उसके दामन थी

ख्वाब मेरे रहे हमदम।

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